Description
‘सुन्दरबन में सात साल’ (Sundarban Mein Saat Saal)
किशोर उम्र के पाठक-पाठिकाओं के लिए लिखी गयी यह साहसिक गाथा है। इस गाथा की अपनी भी एक गाथा है, जो जानने लायक है।
1883 से 1893 तक बांग्ला में एक लोकप्रिय बाल-पत्रिका प्रकाशित हुआ करती थी, जिसका नाम ‘सखा’ था और जिसके संस्थापक संपादक प्रमदाचरण सेन थे। 1893 में भुवनमोहन राय के संपादन में एक दूसरी बाल-पत्रिका का प्रकाशन (Publication) शुरू हुआ, जिसका नाम ‘साथी’ था। एक साल बाद 1894 में दोनों पत्रिकाओं का विलय हो गया और संयुक्त पत्रिका का नाम ‘सखा ओ साथी’ हो गया। संपादक रहे- भुवनमोहन राय। (‘सखा’ के संस्थापक संपादक का देहावसान 1885 में हो गया था।)
इसी ‘सखा ओ साथी’ पत्रिका में ‘सुन्दरबन में सात साल’ नाम से एक धारावाहिक का प्रकाशन शुरू हुआ। साल था- 1895 और लेखक थे- स्वयं संपादक महोदय- भुवनमोहन राय। 1895 के वैशाख, ज्येष्ठ, श्रावण और आश्विन- इन चार अंकों में धरावाहिक के चार किस्तें प्रकाशित हुईं। इसके बाद किसी कारणवश यह धारावाहिक बंद हो गया; हालाँकि ‘सखा ओ साथी’ का प्रकाशन 1897 तक जारी रहा था।
वर्षों बाद 1930 के दशक में योगीन्द्रनाथ सरकार ने ‘सुन्दरबन में सात साल’ (‘सुन्दरबन में सात साल’)गाथा को पूरा करने की कोशिश की, लेकिन वृद्धावस्था, रूग्णता और अन्त में उनके देहावसान के कारण यह प्रयास असफल रहा।
इसके बाद योगीन्द्रनाथ सरकार के एक पुत्र ने बिभूतिभूषण बंद्योपाध्याय से इसे पूरा कराने का अनुरोध किया, जिसे बिभूतिभूषण से सहर्ष स्वीकार किया। ध्यान रहे कि बिभूतिभूषण द्वारा रचित साहसिक गाथा ‘चाँदेर पाहाड़’ (‘चाँद का पहाड़’, जो कि अफ्रिका के घने जंगल-पहाड़ों में एक भारतीय किशोर के साहसिक अभियान की रोमांचक गाथा है) 1937 में प्रकाशित हो गयी थी और यह गाथा बहुत लोकप्रिय भी हो गयी थी।
बिभूतिभूषण ने ‘सुन्दरबन में सात साल’ गाथा को पूरा किया। भुवनमोहन रचित शुरुआती अंश में भी उन्होंने थोड़ा संपादन-संशोधन (वाक्य-विन्यास, शब्द-गढ़न, विराम-चिह्न इत्यादि में) किया, ताकि पूरी गाथा उनकी अपनी शैली में ढल जाय।
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